वराहमिहिर के 16 अनमोल सूत्र
वराहमिहिर के 16 अनमोल सूत्र मुख्य रूप से ज्योतिष शास्त्र से संबंधित हैं और ये सूत्र उनकी प्रसिद्ध कृति ‘बृहत्संहिता’ व अन्य ज्योतिष ग्रंथों में बिखरे हुए मिलते हैं। ये सूत्र जातक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करते हैं।
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राहु दशम भाव में — जातक को कार्यक्षेत्र में शंका, भ्रम और डर की स्थिति रहती है, परंतु राजनीति या गुप्त कार्यों में प्रगति करता है।
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यदि कोई ग्रह अपने ही भाव को दृष्टि डाले — उस भाव का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
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नवम भाव में शुक्र — जातक को भाग्यशाली पत्नी मिलती है, जो उसके जीवन में उन्नति का कारण बनती है।
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सप्तम भाव में वक्री शुक्र — जातक के जीवन में दो विवाह या गहरे संबंध होते हैं।
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चतुर्थ भाव में बली चंद्रमा — जातक को मातृ सुख, वाहन, भवन और मानसिक शांति मिलती है।
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पंचम भाव में राहु — संतान प्राप्ति में बाधा या विलंब होता है।
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एकादश भाव में चंद्रमा — जातक को निरंतर धन, समाज से सहयोग और मान-सम्मान मिलता है।
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पाप ग्रह की दशा में यदि वह शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो — संघर्ष के बावजूद उन्नति मिलती है।
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दो ग्रह समान बल वाले होकर युति करें — मिश्रित फल मिलता है, न अत्यधिक शुभ, न अत्यधिक अशुभ।
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एकादश भाव में बली चंद्रमा — विदेशी व्यापार, महिलाओं से सहयोग और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है।
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कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार — जातक के जीवन में रोग, धन, संबंध, सुख-दुख आदि का अनुमान लगाया जा सकता है।
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ग्रहों की दृष्टि और युति — जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रभाव डालती है।
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शुभ ग्रहों की युति — जीवन में शुभता और उन्नति लाती है।
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पाप ग्रहों की युति — बाधाएं, संघर्ष और कष्ट देती है।
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ग्रहों की वक्री स्थिति — जीवन में अप्रत्याशित परिवर्तन लाती है।
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ग्रहों का बल और स्थिति — जातक के जीवन की दिशा और दशा तय करती है।
इन सूत्रों का उपयोग आज भी ज्योतिषाचार्य जातक के जीवन की संभावनाओं और समस्याओं के विश्लेषण में करते हैं।